बिल्लेसुर बकरिहा–(भाग 41)

त्रिलोचन का चेहरा उतर गया।


 बोले, "घबड़ाते हो नाहक। जितने बड़े हैं, सब बने हुए हैं। 

अस्ल में बड़े हैं ही नहीं। मन्नी बाजपेयी की लड़की ने अपने पति को मार डाला। 

कहते हैं, उसकी उम्र ज़्यादा हो गई थी, मायके में ही वह बिगड़ गई थी, इसीलिये मन्नु ने उसका ब्याह उतरकर कर दिया था। 

अपने यार के कहने से उसने पति को ज़हर खिला दिया। वह कुछ दिन से बीमार था, दवा हो रही थी।"

"कहीं यह भी ऐसा ही मुझ पर करे।" बिल्लेसुर शंका की दृष्टि से देखने लगे।

"कहता तो हूँ, किसी तरह का खौफ़ न खाओ। विचवानी में हूँ। लड़की में न दाग़, न कलङ्क, न चाल-चलन बिगड़ा, न काली कानी-लँगड़ी-लूली।"

जब तुम कह रहे हो तो एतबार सोलहो आने है। 

लेकिन पता बिना जाने दस रोज़ पहले आये नातेदारों से क्या कहूँगा? उनसे यह भी नहीं कहते बनता कि त्रिलोचन भय्या जानते हैं; इसीलिए पता पूछता हूँ। दूसरी बात; कुण्डली बिचरवा लेनी है।

 लड़की की कुण्डली ले आओ। 

मैं अपने सामने बिचरवाऊँगा। 

लड़की मंगली निकली तो बेमौत मरना होगा? ब्याह करना है तो आँखें खोलकर करना चाहिये।"

त्रिलोचन मन से बहुत नाराज़ हुए। बोले, "ऐसी बातें करते हो जैसे बाला के हो। 

तुम्हारे यहाँ वे नहीं आए और कभी कोई भलामानस न आयेगा। हम कहते थे कि भद्रा के जैसे मारे इधर उधर घूमते हो, तुम्हारा घर बस जाय, लेकिन तुम आ गये अपनी अस्लियत पर। 

मान लो, तुम्हीं मङ्गली निकले, तो? कौन बाप अपनी लड़की तुम्हें सौंप देगा? रही बात नातेदारी वाली, सो हम तो इस सोलहो आने बेवकूफ़ी समझते हैं। बैठे-बैठाये पच्चीस रुपये का ख़र्च सिर पर। 

हम तो कहते हैं, चुपचाप चले चलो, विवाह कर लाओ। लड़की के बाप का नाम मालूम करना चाहते हो तो चले चलो, उनका घर भी देख आओ। 

लेकिन तुम्हारा जाना शोभित नहीं है, गाँव भर तुम दोनों को हँसेंगे।"

   0
0 Comments